Friday, October 18, 2024
Lal Bahadur Shastri Jayanti
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Lal Bahadur Shastri Jayanti : लाल बहादुर शास्त्री मोरारजी को पीछे छोड़ कैसे बने थे देश के दूसरे प्रधानमंत्री

लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे और स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता भी। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। शास्त्री जी का जीवन सादगी, ईमानदारी और देशभक्ति से भरा हुआ था। उन्हें विशेष रूप से जय जवान, जय किसान के नारे के लिए याद किया जाता है, जो उन्होंने 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय दिया था।

उनके जीवन की मुख्य बातें

  1. शिक्षा: उन्होंने काशी विद्यापीठ से “शास्त्री” की उपाधि प्राप्त की, जो बाद में उनके नाम का हिस्सा बन गया।
  2. स्वतंत्रता संग्राम में योगदान: शास्त्री जी ने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया और कई बार जेल भी गए।
  3. प्रधानमंत्री बनने का सफर: 1964 में पंडित नेहरू के निधन के बाद, शास्त्री जी को प्रधानमंत्री बनाया गया।
  4. 1965 का युद्ध: भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध के दौरान उन्होंने देश को एकजुट किया और भारतीय सेना का मनोबल बढ़ाया।
  5. मौत: उनका निधन 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में हुआ था, जहां उन्होंने पाकिस्तान के साथ ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
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उनकी ईमानदारी और निष्ठा के लिए आज भी वे देशभर में आदर्श नेता के रूप में माने जाते हैं।

लाल बहादुर शास्त्री का प्रधानमंत्री बनना भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। 1964 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद, कांग्रेस पार्टी को नए प्रधानमंत्री के चयन की चुनौती का सामना करना पड़ा। उस समय मोरारजी देसाई, जो उस समय एक वरिष्ठ नेता और पार्टी के भीतर एक शक्तिशाली व्यक्ति थे, ने प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश की। लेकिन लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर अधिक व्यापक सहमति बनी।

कारण जिनसे शास्त्री जी प्रधानमंत्री बने

  1. सर्वसम्मति और सादगी: शास्त्री जी को उनकी सादगी, विनम्रता और शांत नेतृत्व शैली के लिए जाना जाता था। उनकी छवि जनता और कांग्रेस पार्टी के नेताओं के बीच एक ऐसे व्यक्ति के रूप में थी, जो पार्टी को विभाजन से बचा सकता था।
  2. कांग्रेस नेताओं का समर्थन: उस समय कांग्रेस पार्टी के कई प्रभावशाली नेता जैसे कामराज और इंदिरा गांधी ने शास्त्री जी के पक्ष में समर्थन दिया। कामराज योजना के तहत कई नेताओं ने नेतृत्व छोड़ दिया था और कामराज का राजनीतिक प्रभाव तब बहुत मजबूत था। कामराज ने शास्त्री जी का समर्थन किया, जिससे पार्टी के भीतर संतुलन बना रहा।
  3. मोरारजी देसाई का व्यक्तित्व: मोरारजी देसाई की छवि कठोर और अधिक अनुशासनप्रिय मानी जाती थी। कुछ नेताओं को आशंका थी कि देसाई का नेतृत्व कांग्रेस पार्टी के भीतर अधिक विभाजन का कारण बन सकता है। इसलिए पार्टी में एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो सभी गुटों को साथ ले सके, और शास्त्री जी इस दृष्टिकोण से उपयुक्त उम्मीदवार थे।
  4. पार्टी में लोकप्रियता: लाल बहादुर शास्त्री अपने पूरे राजनीतिक करियर के दौरान कांग्रेस पार्टी में बहुत लोकप्रिय थे। उनके नेतृत्व के दौरान उनका कर्तव्यनिष्ठ और समझौतापरस्त रवैया पार्टी के नेताओं को आकर्षित करता था।
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इन सभी कारणों से मोरारजी देसाई को पीछे छोड़ते हुए लाल बहादुर शास्त्री को भारत का दूसरा प्रधानमंत्री चुना गया।