इस साल कब से शुरू हो रही है जगन्नाथ यात्रा, मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर क्यों नहीं रखते पैर, जानें रहस्य
जगन्नाथ यात्रा एक भव्य और पवित्र हिंदू त्योहार है जो हर साल ओडिशा के पुरी शहर में आयोजित होता है। इसे रथ यात्रा या गुंडिचा यात्रा भी कहा जाता है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को भव्य रथों में विराजमान कर श्रीमंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है।
2025 में जगन्नाथ यात्रा
- तारीख: 27 जून 2025 (शुक्रवार)
- स्थान: पुरी, ओडिशा
- समय: आषाढ़ शुक्ल द्वितीया (हिंदू पंचांग के अनुसार)
यात्रा की विशेषताएं
- तीन विशाल रथ बनाए जाते हैं:
- नंदीघोष: भगवान जगन्नाथ का रथ (16 पहिए)
- तालध्वज: बलभद्र का रथ (14 पहिए)
- दर्पदलन: सुभद्रा का रथ (12 पहिए)
- लाखों श्रद्धालु इन रथों को खींचते हैं — इसे पुण्यदायक माना जाता है।
- भगवान 9 दिन तक गुंडिचा मंदिर में विश्राम करते हैं, फिर वापस लौटते हैं जिसे बहुड़ा यात्रा कहते हैं।
धार्मिक मान्यता
- यह यात्रा भक्त और भगवान के बीच प्रेम और समर्पण का प्रतीक है।
- मान्यता है कि जो भक्त इस यात्रा में भाग लेता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और यह भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ से जुड़ी हुई है। यह यात्रा मुख्यतः ओडिशा के पुरी में आयोजित होती है, लेकिन इसका वर्णन पुराणों में भी मिलता है।
🕉️ ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि
- भगवान जगन्नाथ की उत्पत्ति:
- मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा, त्रेतायुग में नीलांचल (वर्तमान पुरी) में प्रकट हुए थे।
- इनकी मूर्तियों को राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान विष्णु के आदेश पर समुद्र तट पर स्थापित किया।
- रथ यात्रा की शुरुआत:
- रथ यात्रा की शुरुआत का उल्लेख स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण और पद्म पुराण में मिलता है।
- ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) हर साल एक बार जाने की इच्छा करते हैं। इसीलिए उन्हें रथों पर ले जाया जाता है।
🛕 पुरी मंदिर का इतिहास
- पुरी का श्रीजगन्नाथ मंदिर 12वीं शताब्दी में राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने बनवाया था।
- यह मंदिर चार धामों में से एक है (अन्य तीन: बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम्)।
🚩 रथ यात्रा की खासियत
- यह उत्सव 9 दिन तक चलता है।
- भगवान जगन्नाथ को नंदीघोष, बलभद्र को तालध्वज, और सुभद्रा को दर्पदलन नामक रथों में बिठाया जाता है।
- यह रथ यात्रा पुरी से 3 किमी दूर गुंडिचा मंदिर तक जाती है।
📜 ऐतिहासिक महत्व
- इसे भारत की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी चलती मूर्ति यात्रा माना जाता है।
- मुग़ल काल, ब्रिटिश राज और आधुनिक भारत — हर युग में यह यात्रा बिना रुके होती रही है।
🌟 भक्ति का प्रतीक
- इस यात्रा में सभी जाति, वर्ग, और धर्म के लोग भाग ले सकते हैं।
- रथ को खींचने को अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है — कहते हैं इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पुनः आगमन यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है। यह जगन्नाथ रथ यात्रा का दूसरा और अंतिम चरण होता है, जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा 9 दिन के विश्राम के बाद गुंडिचा मंदिर से वापसी कर मुख्य श्रीमंदिर लौटते हैं।
📅 2025 में बहुड़ा यात्रा की तिथि
- तारीख: 5 जुलाई 2025 (शनिवार)
- यह आषाढ़ शुक्ल दशमी तिथि को मनाई जाती है।
🚩 बहुड़ा यात्रा की विशेषताएँ
- गुंडिचा मंदिर से वापसी:
- भगवान 9 दिन गुंडिचा मंदिर (जो उनकी मौसी का घर माना जाता है) में विश्राम करते हैं।
- फिर उसी मार्ग से लौटते हैं, जिससे गए थे।
- रथ वही होते हैं:
- वापसी में भी वही रथ — नंदीघोष (जगन्नाथ), तालध्वज (बलभद्र), और दर्पदलन (सुभद्रा) — प्रयोग किए जाते हैं।
- मौसी मौसी के घर पर ‘पोडा पिठा’:
- वापसी से पहले भगवान को ‘पोडा पिठा’ (ओड़िया मिठाई) का भोग लगाया जाता है।
- महालक्ष्मी का क्रोध:
- मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ बिना लक्ष्मीजी को बताए अपनी बहन और भाई के साथ चले जाते हैं, जिससे लक्ष्मीजी नाराज़ होती हैं।
- बहुड़ा यात्रा के दिन वह रथ के सामने आती हैं और नाराज़गी प्रकट करती हैं। इसे लक्ष्मी विजय कहते हैं।
🙏 धार्मिक महत्त्व
- बहुड़ा यात्रा दर्शाती है कि भगवान केवल देवालय में नहीं, अपनों के घर भी जाते हैं।
- भक्त इस दिन रथों को खींचने के लिए एकत्र होते हैं, और श्रीमंदिर लौटते समय रास्ते में भगवान को कई स्थानों पर रोका जाता है, जिसे ‘अर्धपथ दर्शन’ कहते हैं।
🕉️ समापन
- बहुड़ा यात्रा के बाद नीलाद्री विजय होती है, जब भगवान जगन्नाथ पुनः गर्भगृह में प्रवेश करते हैं।
- इसी के साथ रथ यात्रा पर्व का समापन होता है।