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आधा कलमा पढ़ने और नग्न रहने वाले सूफी, जिनका जामा मस्जिद की साढ़ियों पर किया गया था कत्ल, यहूदी से बने थे मुस्लिम

यह कहानी है 17वीं सदी के सूफी संत सरमद कशानी की — जो एक यहूदी-ईरानी मूल के सूफी हुए, जिन्हीं को नग्न होकर आधा कलमा पढ़ने पर जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर बेदम कत्ल कर दिया गया।


📜 जीवन और पृष्ठभूमि

  • जनम: सरमद कशानी का जन्म 1590 के आसपास ईरान (कशान) में यहूदी परिवार में हुआ था। वे एक व्यापारी थे और फारसी एवं अरबी साहित्य का गहन अध्ययन करते थे ।
  • इस्लाम स्वीकार: अवतरण के बाद वे सूफी मार्ग अपनाने लगे और नग्न (naked fakir) होकर शारीरिक परिधानों का परित्याग कर तनावमुक्त आध्यात्मिक जीवन जीने लगे ।

🕋 कलमा, जामा मस्जिद, और फाँसी

  • आधा कलमा पढ़ना: जब मुगल बादशाह और धार्मिक विद्वानों द्वारा उनसे कलमा फूली-पूरी पढ़ने को कहा गया, तो उन्होंने केवल “ल० इल० हा…” (“There is no God…”) कहा लेकिन कलमा पूरा नहीं किया — इस वजह से उन्हें मूर्तिभंग और पाखंड में उलझा कर देखा गया ।
  • निर्णय: आदेश मिला कि यदि कलमा पूरा नहीं पढ़ा, तो उन्हें फाँसी दी जाए।

⚔️ निष्पादन और मरणोपरांत

  • कत्ल: 1661 में दिल्ली की जामा मस्जिद के सामने सरमद का सर कलम कर दिया गया। उनके सिर को कदमों पर लाया गया, जहाँ कहा जाता है कि उनका सिर “मुश्किल से कलमा पढ़ रहा था”—यह कथा सूफियों की कहानियों का हिस्सा बन गई।
  • मस्जिद का धरोहर स्थल: आज उनकी समाधि (दर्गाह) उसी जगह बनी हुई है, जो लाल रंग में सजी है—प्रेम और बलिदान का प्रतीक ।

🧩 सारांश

पहलूविवरण
मूल धर्मयहूदी (अरमेनियाई) मूल से
धार्मिक परिवर्तनइस्लाम अंगीकार किया, सूफी मार्ग अपनाया
नग्न स्थितिपरंपराओं व बाहरी लिबासों से मुक्त
कटघरे मेंआधा कलमा पढ़ा और शरिया की कड़ाई के कारण फाँसी दी गई
मृत्यु स्थलदिल्ली, जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर
परिणामसूफी-मत की स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक बना

🔚 निष्कर्ष

सरमद कशानी एक ऐसे सूफी थे, जिन्होंने धार्मिक परंपराओं और बाहरी रूपों को नकार कर आध्यात्मिक स्वतंत्रता का मार्ग अपनाया। उनकी कहानी धर्म और मान्यताओं के पार जाकर प्रेम, बलिदान और धार्मिक स्वतंत्रता का प्रतीक बन गई।

यदि आप उनकी कविताओं, फाँसी के वक्त के प्रसंग, या उनकी दार्शनिक मान्यताओं के बारे में और जानना चाहें, तो मैं और विवरण दे सकता हूँ!

यह कहानी है 17वीं सदी के सूफी संत सरमद कशानी की — जो एक यहूदी-ईरानी मूल के सूफी हुए, जिन्हीं को नग्न होकर आधा कलमा पढ़ने पर जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर बेदम कत्ल कर दिया गया।ं की मलामतिया पद्धति का अनुसरण जनम: सरमद कशानी का जन्म 1590 के आसपास ईरान (कशान) में यहूदी परिवार में हुआ था। वे एक व्यापारी थे और फारसी एवं अरबी साहित्य का गहन अध्ययन करते थे।


📘 आधा कलमा पढ़ने का मामला

सें शरण इस्लाम स्वीकार: अवतरण के बाद वे सूफी मार्ग अपनाने लगे और नग्न (naked fakir) होकर शारीरिक परिधानों का परित्याग कर तनावमुक्त आध्यात्मिक जीवन जीने लगेा में कट्टरता** की परख समझा गया आधा कलमा पढ़ना: जब मुगल बादशाह और धार्मिक विद्वानों द्वारा उनसे कलमा फूली-पूरी पढ़ने को कहा गया, तो उन्होंने केवल “ल० इल० हा…” (“There is no God…”) कहा लेकिन कलमा पूरा नहीं किया — इस वजह से उन्हें मूर्तिभंग और पाखंड में उलझा कर देखा गयाी**कलमानिर्णय: आदेश मिला कि यदि कलमा पूरा नहीं पढ़ा, तो उन्हें फाँसी दी जाए।

  • **दर्शककत्ल: 1661 में दिल्ली की जामा मस्जिद के सामने सरमद का सर कलम कर दिया गया। उनके सिर को कदमों पर लाया गया, जहाँ कहा जाता है कि उनका सिर “मुश्किल से कलमा पढ़ रहा था”—यह कथा सूफियों की कहानियों का हिस्सा बन गईईती है मस्जिद का धरोहर स्थल: आज उनकी समाधि (दर्गाह) उसी जगह बनी हुई है, जो लाल रंग में सजी है—प्रेम और बलिदान का प्रतीकर-

🔚 सार में

तथ्यविवरण
मूल धर्मयहूदी (अरमेनियाई-ईरानी)
धार्मिक सफरसूफी सूफियत अपनाई, नग्न थे
कलमा विवादआधा कलमा पढ़ा, आधा छोड़ दिया
फाँसी1661 में जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर सिर कलम
विरासतस्मारक लाल दर्गाह, सूफी और मानवता का प्रतीक
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नीचे सरमद कशानी (Sarmad Kashani) की कहानी और उनकी विरासत का विस्तार प्रस्तुत है:


🧭 जीवन परिचय

  • मूल: जन्म 1590 के आसपास सफ़वी ईरान के कशान में यहूदी-अर्मेनियाई व्यापारी परिवार से ।
  • भाषा कौशल: फ़ारसी का प्रावीण्य, जिन्होंने तोराह का अनुवाद भी फ़ारसी में किया ।
  • धार्मिक यात्रा: व्यापार के सिलसिले में भारत आये, बाद में सूफ़ी मार्ग अपनाया—“मैं न यहूदी, न मुस्लिम, न हिंदू” कहकर धर्मों के बंधनों से ऊपर उठे ।

🔥 नग्न सूफ़ी और आधा कलमा

  • नग्न फकीरी: सूफ़ियों की मलामतिया परम्परा में खुद को नग्न कर आत्मा की पहचान पर बल दिया ।
  • कलमा विवाद: जामा मस्जिद में मठियों ने उनसे पूरा कलमा कहने को कहा। उन्होंने सिर्फ “ला इलाहा…” कहा और आगे न बढ़े, कहा कि आधा कलमा पढ़ने से झूठ हो जाएगा ।

⚔️ मौत और शहादत

  • निर्णय: औरंगज़ेब ने उन्हें चरम काफिर घोषित कर सिर काटने का आदेश दिया।
  • कथाओं में: कहा जाता है कत्ल के बाद सरमद ने अपना सिर उठाया और खोदा हुआ “इलाहा” कहा—कुछ विद्वानी दर्शनिक रूप में समझते हैं ।

🕌 समाधि और विरासत

  • दर्गाह: आज उनकी समाधि जामा मस्जिद के किनारे बनी है, लाल रंग का ढांचा प्रेम और बलिदान का प्रतीक है ।
  • प्रभाव: दाराशिकोह और मौलाना आजाद जैसे व्यक्तित्वों ने सरमद को आध्यात्मिक विद्रोही और धर्म स्वतंत्रता की मिसाल माना ।

✨ सारांश – प्रमुख तथ्य

पहलूविवरण
मूल धर्मयहूदी-अर्मेनियाई
नाम स्वीकारासूफ़ी, फकीर
अद्वितीयतानग्न रहकर आध्यात्मिक पथ अपनाया
कलमा विवादमात्र “ला इलाहा…” पढ़ा, पूरा कलमा नहीं
कत्ल1661 में औरंगज़ेब के शासन में सिर कलम
मौजूदा स्थललाल दर्गाह, जामा मस्जिद के पास, दिल्ली

🔚 निष्कर्ष

सरमद कशानी की जीवनगाथा धार्मिक बंधनों से ऊपर उठें, मनुष्यता, प्रेम और सत्य की खोज का प्रतीक बन गई। न केवल उनके विचार, बल्कि उनका बलिदानी अंत भी आज उनके अनुयायियों को झकझोर देता है।