Narsimha Jayanti 2025: कौन थे नृसिंह भगवान, आज मनाई जा रही है नृसिंह जयंती .
भगवान नृसिंह, जिन्हें नरसिंह भी कहा जाता है, भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों (दशावतार) में से चौथे अवतार हैं। यह अवतार आधे मानव और आधे सिंह के रूप में हुआ था—जिसमें शरीर मानव का और मुख सिंह का था। इस अवतार का उद्देश्य अपने परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा करना और उसके अत्याचारी पिता, राक्षस राजा हिरण्यकशिपु का वध करना था।(Wikipedia)
नृसिंह अवतार की कथा
हिरण्यकशिपु, एक शक्तिशाली असुर राजा था, जिसने ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि वह न तो किसी मानव या पशु द्वारा, न दिन में और न रात में, न घर के अंदर और न बाहर, न आकाश में और न पृथ्वी पर, और न किसी अस्त्र या शस्त्र से मारा जा सके। इस वरदान के कारण वह अहंकारी हो गया और स्वयं को ईश्वर घोषित कर दिया।
उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकशिपु ने कई बार प्रह्लाद को विष्णु की भक्ति से रोकने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहा। एक दिन, क्रोधित होकर, हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि क्या उसका विष्णु इस स्तंभ में भी है। प्रह्लाद ने उत्तर दिया, “हाँ, भगवान सर्वत्र हैं।” हिरण्यकशिपु ने क्रोध में आकर स्तंभ को तोड़ा, और उसी क्षण भगवान विष्णु नृसिंह रूप में प्रकट हुए।

नृसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु को संध्या समय (जो न दिन है न रात), महल के द्वार पर (जो न अंदर है न बाहर), अपनी जांघों पर रखकर (जो न पृथ्वी है न आकाश), अपने नखों से (जो न अस्त्र हैं न शस्त्र) उसका वध किया, इस प्रकार ब्रह्मा के वरदान की सभी शर्तों को पूरा करते हुए अधर्म का नाश किया।
नृसिंह भगवान का महत्व
नृसिंह भगवान को भक्तों की रक्षा करने वाले और अधर्म का नाश करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। उनकी पूजा विशेष रूप से संकटों और भय से मुक्ति के लिए की जाती है। नृसिंह जयंती, जो वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को मनाई जाती है, उनके प्रकट होने की स्मृति में मनाया जाता है।
प्रमुख नृसिंह मंदिर
- सिकलीगढ़, बनमनखी (पूर्णिया, बिहार): मान्यता है कि यहीं भगवान नृसिंह ने हिरण्यकशिपु का वध किया था। यहाँ एक स्तंभ है जिसे “माणिक्य स्तंभ” कहा जाता है, जिससे भगवान प्रकट हुए थे।
- मायापुर (पश्चिम बंगाल): यहाँ इस्कॉन मंदिर में भगवान नृसिंह की भव्य पूजा होती है।
- मथुरा, राजस्थान, झुंझुनूं, बीकानेर: इन स्थानों पर भी नृसिंह भगवान के प्राचीन मंदिर स्थित हैं।
नृसिंह जयंती 2025 में रविवार, 11 मई को मनाई जा रही है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु के चौथे अवतार, नृसिंह भगवान, के प्रकट होने की स्मृति में मनाया जाता है।
तिथि और समय
- चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 10 मई 2025 को शाम 5:29 बजे
- चतुर्दशी तिथि समाप्त: 11 मई 2025 को रात 8:01 बजे
- सायंकाल पूजा का समय: शाम 4:21 बजे से 7:03 बजे तक
- व्रत पारण (उपवास समाप्ति) समय: 12 मई 2025 को सुबह 5:32 बजे के बाद
महत्व
नृसिंह जयंती पर भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए आधे मानव और आधे सिंह के रूप में प्रकट होकर हिरण्यकशिपु का वध किया था। यह दिन अधर्म पर धर्म की विजय और भक्ति की शक्ति का प्रतीक है। इस दिन उपवास और पूजा करने से भक्तों को भय, संकट और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है।