धार्मिक

खत्म हुआ 144 साल के बाद लगने वाला कुंभ मेला, फिर अब कब होगा कुंभ मेला ?

कुंभ मेला चार प्रमुख स्थानों—हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक—में आयोजित किया जाता है और इसकी आवृत्ति विभिन्न प्रकार की होती है।

कुंभ मेले के प्रकार और उनकी आवृत्ति:

  1. पूर्ण कुंभ मेला – हर 12 साल में होता है।
  2. अर्ध कुंभ मेला – हर 6 साल में होता है (सिर्फ हरिद्वार और प्रयागराज में)।
  3. महा कुंभ मेला – हर 144 साल (12 कुंभ मेलों के बाद) में केवल प्रयागराज में होता है।

आगामी कुंभ मेले की तिथियाँ:

  • हरिद्वार कुंभ मेला – 2033 में होगा।
  • प्रयागराज कुंभ मेला – 2025 में (अर्ध कुंभ) और 2037 में (पूर्ण कुंभ) होगा।
  • उज्जैन कुंभ मेला – 2028 में होगा।
  • नासिक कुंभ मेला – 2030 में होगा।

अगर आपका सवाल 144 साल के बाद वाले महाकुंभ मेले के बारे में है, तो यह अब 2169 में प्रयागराज में होगा।

कुंभ मेले की पूरी जानकारी और आगामी तिथियाँ

कुंभ मेला हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो चार प्रमुख स्थानों—प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—में आयोजित किया जाता है। यह मेला पवित्र नदियों के किनारे लगता है, जहां करोड़ों श्रद्धालु स्नान, साधना और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।

कुंभ मेले के प्रकार और उनकी आवृत्ति

  1. पूर्ण कुंभ मेला – हर 12 साल में एक बार होता है।
  2. अर्ध कुंभ मेला – हर 6 साल में होता है (सिर्फ प्रयागराज और हरिद्वार में)।
  3. महाकुंभ मेला – हर 144 साल (12 कुंभ मेलों के बाद) में केवल प्रयागराज में होता है।

महाकुंभ मेला 2025 में नहीं, 2169 में होगा!

हाल ही में 144 साल बाद लगने वाला महाकुंभ मेला प्रयागराज में 2013 में नहीं, 2025 में भी नहीं, बल्कि 2169 में लगेगा। इसका कारण यह है कि पिछला महाकुंभ मेला 1886 में प्रयागराज में हुआ था।

आगामी कुंभ मेले की तिथियाँ

नीचे चारों स्थानों पर होने वाले कुंभ मेलों की अगली संभावित तिथियाँ दी गई हैं:

स्थानअगला अर्ध कुंभअगला पूर्ण कुंभ
प्रयागराज20252037
हरिद्वार20282033
उज्जैन2028
नासिक2030

कुंभ मेला क्यों आयोजित होता है?

पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश (अमृत का घड़ा) से कुछ बूंदें धरती पर गिर गई थीं। जहां-जहां अमृत गिरा, उन्हीं स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। ये स्थान हैं:

  1. प्रयागराज – गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी का संगम
  2. हरिद्वार – गंगा नदी के किनारे
  3. उज्जैन – क्षिप्रा नदी के किनारे
  4. नासिक – गोदावरी नदी के किनारे

कुंभ मेले की विशेषता

  • लाखों संत, नागा साधु, अखाड़ों के गुरु, भक्त और पर्यटक इसमें शामिल होते हैं।
  • सबसे महत्वपूर्ण तिथियां होती हैं शाही स्नान, जब साधु-संत पहले स्नान करते हैं।
  • कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है।

कुंभ मेले की सम्पूर्ण जानकारी

कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु स्नान, पूजा, ध्यान और सत्संग के लिए एकत्र होते हैं। यह चार प्रमुख स्थानों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—में आयोजित किया जाता है।

1. कुंभ मेले के प्रकार

(A) पूर्ण कुंभ मेला (हर 12 साल में)

  • चारों स्थानों पर बारी-बारी से आयोजित होता है।
  • इसे सिर्फ “कुंभ मेला” भी कहा जाता है।

(B) अर्ध कुंभ मेला (हर 6 साल में)

  • केवल प्रयागराज और हरिद्वार में होता है।

(C) महाकुंभ मेला (हर 144 साल में)

  • सिर्फ प्रयागराज में होता है
  • पिछला महाकुंभ 1886 में प्रयागराज में हुआ था।
  • अगला महाकुंभ अब 2169 में होगा

2. कुंभ मेले की तिथियाँ (आगामी कुंभ मेले)

कुंभ मेले की तिथियाँ ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर तय होती हैं। नीचे चारों स्थानों पर लगने वाले कुंभ मेलों की अनुमानित तिथियाँ दी गई हैं:

स्थानअर्ध कुंभ (6 साल में)पूर्ण कुंभ (12 साल में)
प्रयागराज20252037
हरिद्वार20282033
उज्जैन2028
नासिक2030

3. कुंभ मेले का पौराणिक महत्व

समुद्र मंथन की कथा

कुंभ मेले की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है। जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तो अमृत कलश (अमृत का घड़ा) निकला। देवताओं को डर था कि असुर अमृत न पी लें, इसलिए वे उसे लेकर भागे। इस दौरान अमृत की बूंदें चार स्थानों पर गिरीं:

  1. प्रयागराज – गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर।
  2. हरिद्वार – गंगा नदी के किनारे।
  3. उज्जैन – क्षिप्रा नदी के किनारे।
  4. नासिक – गोदावरी नदी के किनारे।

इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है, और अमृत स्नान (पवित्र स्नान) का महत्व बताया जाता है।

4. कुंभ मेले की प्रमुख विशेषताएँ

  • शाही स्नान: नागा साधुओं और विभिन्न अखाड़ों के साधु सबसे पहले स्नान करते हैं।
  • संत-महात्माओं का प्रवचन: श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक ज्ञान की गंगा बहती है।
  • धार्मिक अनुष्ठान और भजन-कीर्तन: पूरा माहौल भक्ति से सराबोर हो जाता है।
  • अखाड़ों का विशेष महत्व: कुंभ मेला मुख्य रूप से 13 प्रमुख अखाड़ों के संतों द्वारा संचालित होता है।
  • विदेशी पर्यटकों का आकर्षण: यह मेला पूरी दुनिया के साधु-संतों और योगियों को आकर्षित करता है।

5. कुंभ मेले में आने वाले प्रमुख अखाड़े

कुंभ मेले में भारत के 13 अखाड़े भाग लेते हैं, जो तीन श्रेणियों में बंटे होते हैं:

(A) शैव अखाड़े (भगवान शिव के उपासक)

  1. जूना अखाड़ा
  2. निरंजनी अखाड़ा
  3. महानिर्वाणी अखाड़ा
  4. अटल अखाड़ा
  5. आवाहन अखाड़ा
  6. आनंद अखाड़ा

(B) वैष्णव अखाड़े (भगवान विष्णु के उपासक)

  1. दिगंबर अखाड़ा
  2. निर्मोही अखाड़ा
  3. निर्वाणी अखाड़ा

(C) उदासीन अखाड़े (संतों और योगियों का संप्रदाय)

  1. बड़ा उदासीन अखाड़ा
  2. नया उदासीन अखाड़ा
  3. निर्मल अखाड़ा
  4. अग्नि अखाड़ा

6. कुंभ मेले के दौरान प्रमुख गतिविधियाँ

  • संतों और नागा साधुओं से भेंट।
  • गंगा स्नान और अमृत स्नान।
  • धार्मिक कथा और प्रवचन।
  • योग, ध्यान और साधना शिविर।
  • धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन।

7. कुंभ मेले में जाने की तैयारी और ज़रूरी जानकारी

  • कुंभ मेले में करोड़ों श्रद्धालु आते हैं, इसलिए पहले से होटल या धर्मशाला बुक कर लें।
  • स्नान के लिए प्रमुख तिथियाँ बहुत महत्वपूर्ण होती हैं, इसलिए इन्हें ध्यान में रखें।
  • सरकारी और प्राइवेट ट्रांसपोर्ट सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं, लेकिन भारी भीड़ के कारण वैकल्पिक साधन भी रखें।
  • स्वास्थ्य और सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें।

8. कुंभ मेले की ऐतिहासिक विशेषताएँ

  • यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाता है।
  • 2013 प्रयागराज कुंभ मेले में लगभग 12 करोड़ श्रद्धालु आए थे।
  • 2019 में, पहली बार “अर्ध कुंभ” को “कुंभ मेला” कहा गया।

निष्कर्ष:

अगला कुंभ मेला 2025 में प्रयागराज में होगा!

अगर आप 144 साल बाद लगने वाले महाकुंभ मेले की बात कर रहे हैं, तो अब वह 2169 में होगा।
इसके अलावा, अगले कुंभ मेलों के लिए अपनी यात्रा पहले से प्लान करें और इस अद्भुत आध्यात्मिक मेले का हिस्सा बनें