लोग कहते थे ‘देखो छक्का जा रहा है’, आज कह रहे हैं सैल्यूट मैडम…पढ़िए ट्रांसजेंडर दिव्या ओझा की कहानी
बिहार के गोपालगंज जिले की रहने वाली दिव्या ने समाज की तानों और भेदभाव के बावजूद बिहार पुलिस में सिपाही की नौकरी हासिल कर इतिहास रचा है।
दिव्या ओझा की संघर्षपूर्ण यात्रा
- शुरुआत और पहचान: दिव्या का जन्म एक लड़के के रूप में हुआ था, लेकिन बचपन से ही वह महसूस करती थीं कि उनका असली व्यक्तित्व महिला का है। समाज और परिवार की अपेक्षाओं के बीच उन्होंने अपनी पहचान को स्वीकारा और आत्मविश्वास के साथ जीवन की राह पर चलने का निर्णय लिया।

- शिक्षा और तैयारी
- स्थानांतरण और कोचिंग: दिव्या ओझा ने गोपालगंज से पटना स्थानांतरित होकर एक निजी कोचिंग संस्थान में सिपाही भर्ती परीक्षा की तैयारी शुरू की।
- समाज की उपेक्षा का सामना: तैयारी के दौरान दिव्या को समाज से कई तानों और भेदभाव का सामना करना पड़ा। लोग उन्हें ‘छक्का’ कहकर पुकारते थे, लेकिन उन्होंने इन सभी को अपनी प्रेरणा बना लिया।
- शिक्षकों का मार्गदर्शन: दिव्या ने अपने शिक्षकों से मिले मार्गदर्शन को गंभीरता से अपनाया और उनकी सलाह पर अमल किया।
- सामाजिक स्वीकृति और सम्मान: आज दिव्या को लोग ‘मैम’ के रूप में सम्मानित करते हैं, और उनकी सफलता ने यह साबित कर दिया कि समाज की रूढ़िवादिता को तोड़ा जा सकता है।
दिव्या का संदेश
दिव्या ओझा का मानना है कि यदि किसी में आत्मविश्वास और संघर्ष की भावना हो, तो कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। उनकी कहानी यह दर्शाती है कि समाज की सीमाओं को पार करके भी सफलता प्राप्त की जा सकती है।