धार्मिक

वट सावित्री पर सोमवती अमावस्‍या का बेहद शुभ संयोग, पूजा में जरूर पढ़ें यह व्रत कथा

वट सावित्री व्रत 2025 पर इस बार सोमवती अमावस्या का दुर्लभ और अत्यंत शुभ संयोग बन रहा है। यह व्रत सुहागन स्त्रियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। वे अपने पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और पारिवारिक कल्याण के लिए वटवृक्ष (बड़ के पेड़) की पूजा करती हैं। सोमवती अमावस्या का दिन जब वट सावित्री व्रत के साथ आता है, तो इसका फल कई गुना बढ़ जाता है।


🌳 वट सावित्री व्रत कथा (संक्षिप्त)

बहुत समय पहले की बात है, राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री अत्यंत सुंदर, बुद्धिमती और धर्मनिष्ठा स्त्री थी। उन्होंने सत्यवान नामक वनवासी और धर्मपरायण युवक को अपने पति के रूप में चुना। विवाह के बाद जब उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके पति की आयु अल्प है, तो उन्होंने कठोर व्रत और तपस्या प्रारंभ की।

एक दिन जब सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने गए, तभी यमराज उनके प्राण लेने आए। सावित्री ने यमराज का पीछा किया और उन्हें धर्म, भक्ति, और नारी शक्ति के बारे में उपदेश दिया। यमराज उनकी निष्ठा और प्रेम से प्रसन्न हुए और सत्यवान को जीवनदान दे दिया।


🪔 पूजा विधि (संक्षेप में)

  1. स्नान के बाद व्रत संकल्प लें
  2. वटवृक्ष (बड़ का पेड़) के नीचे मिट्टी से सावित्री और सत्यवान की प्रतिमा बनाएं या तस्वीर रखें।
  3. वटवृक्ष की जड़ में जल चढ़ाएं और कच्चा दूध अर्पित करें।
  4. कच्चा सूत (धागा) लेकर वटवृक्ष की 7 या 21 बार परिक्रमा करें और उसे पेड़ से लपेटें।
  5. व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
  6. अंत में पति के चरणों को स्पर्श कर आशीर्वाद लें।

📅 2025 में वट सावित्री व्रत और सोमवती अमावस्या:

  • तारीख: 26 मई 2025 (सोमवार)
  • संयोग: वट सावित्री व्रत + सोमवती अमावस्या

यह दिन विशेष फलदायी माना जाता है। अगर आप भी व्रत करती हैं, तो इस दिन व्रत कथा का श्रवण या पाठ अवश्य करें। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है और वैवाहिक जीवन में सुख-सौभाग्य बना रहता है।

यह रही वट सावित्री व्रत कथा पूरी विस्तार से, जिसे व्रत के दिन पूजा के समय पढ़ना या सुनना बहुत पुण्यदायी माना जाता है:


🌿 वट सावित्री व्रत कथा (विस्तार से)

प्राचीन समय में राजा अश्वपति नामक एक पराक्रमी और धर्मनिष्ठ राजा थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए कठोर तप किया और प्रतिदिन हजारों गायत्री मंत्रों का जाप किया। कई वर्षों के बाद उन्हें सावित्री नामक एक तेजस्विनी और रूपवती कन्या की प्राप्ति हुई। चूंकि यह कन्या तप के फलस्वरूप प्राप्त हुई थी, इसलिए उसका नाम सावित्री रखा गया।

सावित्री जब विवाह योग्य हुई, तो स्वयं वर की तलाश करने वन में गई। वहाँ उसने सत्यवान नामक एक धर्मपरायण, परोपकारी और सुंदर युवक को देखा और उसे ही पति रूप में चुन लिया। परंतु जब वह अपने पिता के पास सत्यवान से विवाह की इच्छा लेकर पहुंची, तो राजर्षि नारद ने बताया कि सत्यवान की आयु बहुत ही अल्प है — वह एक वर्ष के भीतर मृत्यु को प्राप्त होगा।

यह सुनकर भी सावित्री अपने निर्णय से नहीं डगमगाई। उसने कहा, “जिसे मैंने एक बार पति रूप में चुन लिया, वही मेरे लिए सर्वस्व है।” राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया।

सावित्री अपने पति के साथ वन में कुटिया में रहने लगी और पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए सेवा में रत हो गई। जब सत्यवान की मृत्यु का दिन निकट आया, तब सावित्री ने त्रिरात्र व्रत और कठोर उपवास का संकल्प लिया।

निर्धारित दिन, सावित्री अपने पति के साथ वन गई। सत्यवान लकड़ी काट रहा था, तभी उसे चक्कर आने लगे और वह सावित्री की गोद में लेट गया। उसी समय यमराज वहाँ आए और सत्यवान के प्राण लेकर चल पड़े। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी।

यमराज ने सावित्री से कहा, “वह एक धर्मनिष्ठ स्त्री है, घर लौट जाए।” लेकिन सावित्री ने धर्म और स्त्रीधर्म की सुंदर व्याख्या करते हुए कहा — “जहाँ मेरा पति जाएगा, वहाँ मैं भी जाऊंगी।”

यमराज उसकी निष्ठा और भक्ति से प्रभावित हुए। उन्होंने सावित्री से एक-एक कर तीन वर मांगने को कहा।

  1. पहला वर — उसके सास-ससुर की नेत्रज्योति और राज्यवापसी।
  2. दूसरा वर — अपने पिता को सौ पुत्र।
  3. तीसरा वर — स्वयं को सौ पुत्रों की माता बनाना।

तीसरा वर सुनते ही यमराज चौंक गए। उन्होंने कहा, “तुम सौ पुत्रों की माता तभी बन सकती हो, जब तुम्हारा पति जीवित हो।” इस प्रकार यमराज को विवश होकर सत्यवान को जीवनदान देना पड़ा।

इस प्रकार सावित्री की सत्यनिष्ठा, तप और दृढ़ संकल्प ने उसे अपने पति को पुनर्जीवित करने में सफल बना दिया। तभी से यह व्रत सावित्री व्रत के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


🙏 इस कथा से सीख

यह व्रत और कथा हमें सिखाती है कि नारी की श्रद्धा, भक्ति और संकल्प से असंभव भी संभव हो जाता है। नारी में अपार शक्ति होती है यदि वह सच्चे प्रेम और धर्म के मार्ग पर चले।