धार्मिक

मरणासन्‍न लोगों के लिए अलग से क्‍यों बनता है पुरी के जगन्‍नाथ मंदिर में ‘महाप्रसाद’?

पुरी के जगन्नाथ मंदिर में मरणासन्‍न (अंतिम सांसें गिन रहे) व्यक्तियों के लिए विशेष रूप से “महाप्रसाद” तैयार करना केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से गहरी मान्यता से जुड़ा हुआ है। आइए इसे अपने शब्दों में समझते हैं:


🌿 क्यों बनाया जाता है मरणासन्न व्यक्ति के लिए अलग ‘महाप्रसाद’?

1. अंत समय में मोक्ष की कामना

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, मृत्यु के समय भगवान के नाम, दर्शन, और प्रसाद से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पुरी का “महाप्रसाद” स्वयं भगवान जगन्नाथ द्वारा ग्रहण किया हुआ भोजन माना जाता है — इसलिए इसे मृत्यु से पहले अंतिम ‘ईश-संपर्क’ माना जाता है।


2. ‘अंत्येष्टि’ से पहले ‘दिव्य संस्कार’

मरणासन्‍न व्यक्ति को यह प्रसाद देना उसे शारीरिक मृत्यु से पहले एक दिव्य आत्मिक आशीर्वाद देना है।
यह मान्यता है कि इससे उसका जन्म-मरण का चक्र रुक सकता है और उसे अगला जन्म नहीं लेना पड़े।


3. पुरी में महाप्रसाद का विशेष दर्जा

  • इसे ‘अवदूत अन्न’ भी कहा जाता है — जो जाति, धर्म, समय या स्थिति की परवाह नहीं करता।
  • यही कारण है कि इसे कोई भी, किसी भी स्थिति में ग्रहण कर सकता है, चाहे वह रोगी हो, वृद्ध हो या मृत्यु के करीब हो।

4. संस्कार और शुद्धता का प्रतीक

यह प्रसाद शुद्ध और भगवान के सामने अर्पित किया गया होता है, इसलिए इसे अंतिम समय में ग्रहण करना आध्यात्मिक पवित्रता और आत्मिक बल प्रदान करता है।


🔱 1. मृत्यु के समय ‘परम तत्व’ से जुड़ने का माध्यम

पुरी का ‘महाप्रसाद’ सिर्फ भोजन नहीं होता — यह भगवान जगन्नाथ द्वारा पहले ग्रहण किया गया प्रसाद होता है।
मरणासन्‍न व्यक्ति को यह प्रसाद देने का उद्देश्य है कि:

  • उसे ईश्वर का साक्षात स्पर्श प्राप्त हो
  • अंतिम सांस में मन स्थिर रहे
  • जीवनभर के पापों का प्रायश्चित हो

🪔 2. महाप्रसाद = पंचतत्वों को शुद्ध करने वाला

शास्त्रों में पंचतत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से बने इस शरीर को शुद्ध करने के लिए मृत्यु से पूर्व इसे ‘दिव्य अन्न’ से पवित्र करना जरूरी माना गया है।
महाप्रसाद इन पंचतत्वों में दिव्यता भरता है — जिससे आत्मा शांति से निकल सके।


🌅 3. अंतिम इच्छा: भगवान का अन्न ही अंतिम अन्न हो

बहुत से भक्तों की अंतिम इच्छा यही होती है कि वे अपने जीवन का अंतिम अन्न, भगवान का अन्न यानी महाप्रसाद ही ग्रहण करें।
पुरी में जब कोई व्यक्ति मृत्युशैय्या पर होता है, तो परिवार विशेष आग्रह करता है कि जगन्नाथ मंदिर से महाप्रसाद मंगाया जाए, ताकि उनके प्रियजन की आत्मा को शांति मिले।


🧭 4. केवल पुरी में ही यह मान्यता क्यों?

  • जगन्नाथ मंदिर को “धरती का बैकुंठ” कहा जाता है
  • यहाँ भगवान स्वयं भोग ग्रहण करते हैं — इसे ‘संजीव अन्न’ भी कहा जाता है
  • इस प्रसाद को घर ले जाकर मरणासन्‍न व्यक्ति को देना पवित्र परंपरा मानी जाती है, जो विशेष रूप से ओडिशा, बंगाल और दक्षिण भारत में प्रचलित है

🕉️ 5. पवित्र प्रसाद के बिना नहीं मानी जाती ‘पूर्ण विदाई’

ऐसा भी कहा जाता है कि यदि मरणासन्‍न व्यक्ति को महाप्रसाद नहीं मिल पाता, तो परिजन मृत्यु के बाद भी प्रेत शांति के लिए महाप्रसाद अर्पण कराते हैं, ताकि आत्मा को परम शांति मिल सके।


🔚 निष्कर्ष

पुरी का ‘महाप्रसाद’ एक साधारण अन्न नहीं बल्कि ईश्वर का आशीर्वाद है।
मरणासन्‍न व्यक्ति को यह देना केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि उस आत्मा को ईश्वर की गोद में पहुंचाने का एक शुभ और दिव्य माध्यम माना जाता है।