Sunday, September 8, 2024
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Pratima Kumari Struggle : जानिए प्रतिमा कुमारी की संघर्ष की एक अनोखी कहानी जिन्होंने अपनी बेटी और बेटे के साथ दी परीक्षा

प्रतिमा कुमारी की शादी साल 2003 में सुसाडी के उत्तम कुमार के साथ हुई थी। उनके पति पूर्व सरपंच भी रह चुके हैं और सामाजिक कार्यों में लिप्त रहते हैं।प्रतिमा पूछती है कि क्या शिक्षित होना गलत है? बेटी और बेटे के साथ परीक्षा देने में आखिर दिक्कत क्या है?क्या अपनी संतानों के साथ-साथ मन नहीं पढ़ सकती है? गांव में प्रतिमा कुमारी की अब हर जगह चर्चा हो रही है।

बेटा और बेटी के साथ मां का भी परीक्षार्थी बन जाना एक अनोखी कहानी है। इसमें मां का जज्बा और जीत की कहानी भी है। शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक सोच और खूबसूरत बदलाव का इससे बेहतर उदाहरण आपको कहीं नहीं देखने को मिलेगा। यह एक अद्भुत मिसाल है।रोहतास जिले में अभी स्नातक पार्ट 1 और इंटरमीडिएट की परीक्षा चल रही है ।
बताया जा रहा है कि इन परीक्षाओं में एक मां भी अपने बेटे और बेटी के साथ शामिल होकर सभी के सामने एक अद्भुत मिसाल पेश कर रही हैं। मां बेटी और बेटे की आकर्षक जोड़ी रोहतास जिले के संजौली प्रखंड की सुसाड़ी गांव की है।

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वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित स्नातक खंड एक की परीक्षा में सुसाडी के पूर्व सरपंच उत्तम कुमार की 18 साल की बेटी तनवी पटेल कॉलेज बिक्रमगंज परीक्षा केंद्र में शामिल है।

वही इंटरमीडिएट की परीक्षा में तनवी की मां प्रतिमा कुमारी भी 17 वर्षीय बेटे ऋषभ के साथ परीक्षा दे रही हैं। हालांकि मां बेटे का परीक्षा केंद्र और विषय अलग-अलग हैं। मां इंटर कला की परीक्षा में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय डिलियां (डेहरी ऑन सोन ) में परीक्षार्थी हैं, जबकि बेटा का परीक्षा केंद्र सासाराम के संत अन्ना विद्यालय है।

गांव के लोगों के बीच अब उनकी खूब चर्चा हो रही है। प्रतिमा का कहना है कि क्या शिक्षित होना गलत है?बेटी और बेटे के साथ आखिर परीक्षा देने में दिक्कत क्या है? क्या अपने संतानों के साथ साथ मां नहीं पढ़ सकती? प्रतिमा की शादी 2003 में सुसाडी के उत्तम कुमार के साथ हुई थी। पति पूर्व सरपंच भी रह चुके हैं और सामाजिक सरोकार से जुड़े हैं।

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पत्नी ने शादी से पूर्व 2000 में झारखंड के लाल मटिया उच्च विद्यालय से मैट्रिक की पास की थी। अपनी गृहस्थी को संभालने की वजह से प्रतिमा की पढ़ाई छूट गई थी। वित्तीय हालात भी अच्छी नहीं थी। तीन संतानों को पढ़ाने – लिखाने की जिम्मेदारियां भी कंधे पर आई। प्रतिमा को यह बात हमेशा बुरी लगती थी कि उनकी पढ़ाई अधूरी रह गई।

बड़ी बेटी ने मां के सपनों को फिर से पूरा करने के लिए उन्हें हिम्मत दी। बेटे और बेटी के कहने पर मां ने ठान लिया कि वह अपने बच्चों के साथ पढ़ाई करेंगी।बीए में पढ़ते हुए बेटी ने मां को भी पढ़ाया। वह दोबारा पढ़ाई जारी रखने का श्रेय बच्चों के साथ अपने पति को भी देती हैं।उन्होंने कहा, मैं 22 साल बाद दोबारा कॉलेज जाने को लेकर काफी डरी हुई थी। पर कुछ दिनों बाद उन्हें अच्छा लगने लगा। बेटी कहती है कि भाई के साथ मां भी साथ साथ पढ़ी और आज हम दोनो भाई-बहन, मां के साथ साथ परीक्षा भी दे रहें हैं। प्रतिमा बताती हैं कि नौकरी के लिए अब तो उम्र भी नहीं बच्ची है, लेकिन पढ़े-लिखे होने का मान अलग है।

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उनके इस जज्बे को देखकर एसडीएम ने भी प्रतिमा का हौसला बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि मां बेटी और बेटे की शिक्षा के क्षेत्र में यह जोड़ी सभी के लिए अनुकरणीय है यह किसी क्रांति से कम नहीं है।ऐसी महिलाएं समाज के लिए आदर्श बनती हैं परिवार में शिक्षा को लेकर जागरूकता बिक्रमगंज अनुमंडल के लिए एक अच्छी बात है लोगों को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए