आखिर 15 सालों के बाद भट्टा-पारसौल में हो ही गई हैप्पी एंडिंग, लेकिन राहुल गांधी रह गए खाली हाथ, बाइक पर बैठाकर ले जाने वाला भी राहुल का साथ छोड़ गया…
Bhatta Parsaul case : उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित भट्टा और पारसौल गांव आज से तकरीबन 15 साल पहले तक अचानक से चर्चा में तब आ गए थे जब वहां जमीन अधिग्रहण की बात चली थी उससे पहले तक ये दोनों ही गांव अपनी हरी-भरी जमीनों के लिए जाने जाते थे. यहां के किसान अपने खेतों में मेहनत करते जिसके बदले उनके खेतों फसलें लहलहाती थीं. कुल मिलाकर अगर ये कहा जाए कि दोनों गांवों के लोगों का जीवन आराम से गुजर रहा था तो कुछ गलत नहीं होगा लेकिन कोई नहीं जानता था कि कुछ ही समय बाद यूपी के ये दोनों गांव देशभर में टीवी चैनलों और अखबारों की सुर्खियों में इस कदर छा जाएंगे कि पूरे 15 साल तक छाए ही रहेंगे.
दरअसल साल 2009 में एक दिन गांव की पंचायत में यमुना प्राधिकरण (यीडा) के अधिकारियों का एक दल पहुंचा. इस दल ने घोषणा की कि दोनों गांवों की जमीनें अधिग्रहित करते हुए इन्हें ग्रेटर नोएडा के सेक्टर-18 और 20 बनाए जाएंगे. बस फिर क्या था इस खबर ने पूरे गांव में खलबली मचा दी. मालूम हो कि किसानों को उनकी जमीनों के बदले मुआवजा देने की बात यमुना प्राधिकरण (यीडा) के अधिकारियों ने भी कही थी, लेकिन किसानो को मिलने वाला मुआवजा उम्मीद से भी काफी कम था. ऐसे में किसानों ने अधिक मुआवजे के लिए संघर्ष शुरू करते हुए मुआवजे की कथित तौर मिलने वाली मामूली राशि के खिलाफ आवाज उठा दी.
इस तरह से साल 2011 को किसानो ने पूर्ण रूप से आंदोलन की शुरुआत की. इस आंदोलन में बहुत कुछ घटा लेकिन अब तकरीबन 15 सालों के बाद किसानों के पक्ष में फैसला आया है जिसके अनुसार किसानों को न सिर्फ पूरा मुआवजा मिलेगा बल्कि आवंटियों को प्लाट भी मिलेंगे. लेकिन इन सब सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस और राहुल गांधी को उठाना पड़ा. मालूम हो कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस जीरो पर सिमट गई. यहां तक कि जिस शख्स ने राहुल गांधी को बाइक पर बैठाकर घटनास्थल तक ले जाने का काम किया था वो शख्स भी कॉग्रेस का दामन छोडकर बीजेपी में शामिल हो गया.