Places Of Worship Act : क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, यह कानून अगर खत्म हो गया तो बदल जाएगा कई धार्मिक स्थलों का मूल स्वरूप
प्लेसेज ऑफ़ वर्शिप एक्ट बीते कुछ दिनों से सुर्खियों में बनी हुई है। ज्ञानवापी मामले में अदालत के निर्णय के बाद इस पर बहस छिड़ गई है। भारतीय जनता पार्टी सांसद हरनाथ सिंह यादव ने तो सालों पुराने इस एक्ट को समाप्त करने की मांग तक कर डाली है। क्या आप जानते हैं कि आखिर यह कानून है क्या और इसे क्यों लाया गया था।
प्लेसेज ऑफ़ वर्शिप एक्ट को साल 1991 में तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव की सरकार लेकर आए थे। उस समय हुए राम मंदिर आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार इस कानून को लाने में सक्रिय हुई थी। इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 से बने किसी भी धार्मिक स्थल को दूसरे धार्मिक स्थल में नहीं बदला जा सकता है।
धार्मिक स्थल से छेड़छाड़ के लिए इसमें कैद और जुर्माने का दंड भी रखा गया है। अगर कोई व्यक्ति धार्मिक स्थल के साथ छेड़छाड़ करता है तो उसे 3 साल की कैद और जुर्माना दोनों हो सकता है।
अयोध्या मामले को प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट से अलग रखा गया था। इसके पीछे तर्क दिया गया था कि यह मामला देश की आजादी से पहले से अदालत में चल रहा था। लिहाजा, इसे वर्शिप एक्ट से अलग रखा जाए।
भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने इस कानून को समाप्त करने की मांग की है। बजट सत्र के दौरान राज्यसभा में बहस के दौरान उन्होंने इस कानून को तत्काल प्रभाव से रद्द करने की मांग की है। हरनाथ सिंह ने कहा कि यह कानून संविधान के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध समाज के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उन्होंने इसे असंवैधानिक भी बताया है।