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Ayodhya News : क्या आपको पता है कि अयोध्या में कहां त्यागा था लक्ष्मण जी ने अपना शरीर, भगवान राम से पहले ली थी जल समाधि

भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण का त्याग भी कर दिया था। इस बात से लक्ष्मण जी बहुत ज्यादा दुखी हो गए थे और उन्होंने अयोध्या के इस घाट पर सरयू जल में भगवान राम से पहले समाधि ले ली थी।आइए जानते हैं आखिर भगवान राम ने लक्ष्मण जी का त्याग क्यों किया और इसके पीछे क्या कारण था।

भगवान राम के साथ कदम से कदम मिलाकर लक्ष्मण जी पूरे 14 वर्ष तक उनके वनवास के दौरान उनके साथ रहे फिर अयोध्या लौटने पर ऐसा क्या हो गया था जो भगवान राम ने अपने प्राणों से प्रिय भाई लक्ष्मण का त्याग कर दिया था।आखिर इसके पीछे क्या कारण है।भगवान राम को ऐसा क्यों करना पड़ा था यह सब कुछ आज हम विस्तार से जानेंगे। उस जगह के बारे में भी जानेंगे जहां लक्ष्मण जी ने अपने शरीर को अयोध्या में त्यागा था।

रामायण के अनुसार भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण को इसलिए त्याग दिया था क्योंकि वह अपने वचन से बंधे हुए थे एक दिन यमराज भगवान राम से मिलने अयोध्या आए थे और उनसे कहा था कि हमें आपसे एकांत में मिलना है। यदि हमारी और आपकी वार्तालाप के बीच कोई आएगा तो उसे मृत्यु दंड की सजा दी जाएगी। यमराज दरअसल इसलिए भगवान से मिलने आए थे क्योंकि भगवान राम की आयु पूर्ण होने वाली थी और यमराज यह बात जानते थे कि बिना रघुनाथ की आज्ञा के कोई भी उनका मृत्यु लोक से नहीं ले जा सकता है। इसलिए वह भगवान राम को इस बात की सूचना देने आए थे कि प्रभु आपका समय पूर्ण हो चुका है और आपको बैकुंठ धाम में जाना है।

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इसके बाद भगवान राम ने यमराज की बात को स्वीकार कर लिया और भाई लक्ष्मण को उस कक्ष के बाहर द्वारपाल के रूप में नियुक्त कर दिया और उनसे कहा कि किसी भी स्थिति में आप किसी को भी अंदर नहीं आने देंगे। जब तक हम दोनों की वार्तालाप समाप्त नहीं हो जाती है। जब लक्ष्मण जी कक्षा के बाहर पहरेदारी कर रहे थे तभी वहां कुछ देर बाद दुर्वासा ऋषि आ गए थे और उन्होंने लक्ष्मण जी से कहा कि उन्हें भगवान राम से मिलना है। हमको अंदर जाने दीजिए। लक्ष्मण जी ऋषि दुर्वासा को कक्ष के अंदर जाने से मना कर रहे थे क्योंकि उन्होंने श्री राम जी को वचन दिया था कि वह उनकी और यमराज की वार्तालाप के बीच में किसी को भी अंदर नहीं आने देंगे। ऋषि दुर्वासा यह सुनकर क्रोधित हो गए और उन्होंने लक्ष्मण जी से कहा अगर तुमने मुझे अंदर नहीं जाने दिया तो मैं अयोध्या नगरी को श्राप दे दूंगा। लक्ष्मण जी ने सोचा की पूरी अयोध्या नगरी को श्राप मिलने से अच्छा है कि मुझे ही मृत्यु दंड की सजा मिल जाए।लक्ष्मण जी कक्ष के अंदर चले गए और भगवान राम और यमराज की एकांत वार्तालाप के बीच में पहुंच गए तब यमराज ने कहा प्रभु आपको लक्ष्मण जी को मृत्यु दंड देना होगा। क्योंकि अपने वचन दिया है। भगवान राम असमंजस में पड़ गए और उन्होंने अपने गुरु वशिष्ठ से इस बारे में पूछा तब वशिष्ठ ने कहा कि परित्याग करना मृत्यु दंड के समान है और आप लक्ष्मण का परित्याग कर दीजिए।

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श्री राम ने अपने दिए हुए वचनों का पालन करते हुए लक्ष्मण जी का त्याग कर दिया। लक्ष्मण जी ये त्याग सहन नहीं कर पाए और अयोध्या की सरयू तट पर अपना शेषनाग रूप लेकर जल समाधि में चले गए और वही अंतर ध्यान भी हो गए। इसके बाद भगवान राम ने अयोध्या के गुप्तार घाट में जल समाधि ली थी। इस बात का वर्णन रामायण में विस्तार पूर्वक बताया गया है।
लक्ष्मण जी ने अयोध्या में जहां जल समाधि ली थी उसे जगह एक विशाल मंदिर भी है जिसे लक्ष्मण किला कहा जाता है। इसके ठीक सामने वही सरयू तट भी है जहां लक्ष्मण जी ने जल समाधि ली थी और उसे तट को सहस्त्र धारा घाट कहते हैं।यहां लोग आज भी दर्शन करने आते हैं।

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मंदिर में भगवान राम, मां जानकी और लक्ष्मण जी की प्रतिमा विराजमान है। एकादशी, रामनवमी और राम विवाह जैसे शुभ अवसरों पर यहां भजन-कीर्तन और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है। राम मंदिर से लक्ष्मण किला की दूरी लगभग 2.5 किलोमीटर की है।