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Shubham Rauniyar News : जानिए जाते-जाते क्या थे शुभम के आखिरी शब्द, सुनकर भावुक हुए सभी, कहा मिल गई नरक से मुक्ति

जीवन को सुंदर बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि आप दूसरों की जिंदगी में कितना महत्व रखते हैं. आपका दूसरों के लिए कितना मूल्य है यह पता होना जरूरी है. दूसरों की मदद करने में बताया गया जीवन और एकांत में बताया गया जीवन काफी अलग होता है। जीवन की सुंदरता तभी बढ़ती है जवाब दूसरों की मदद करते हैं और आपका बिताया हुआ जीवन इस बात पर निर्भर करता है कि कितना जीवन अपने दूसरों के लिए बिताया और कितना जीवन एकांत में बिताया।

दूसरों के लिए बिताया गया जीवन मूल्यवान होता है।जीवन की सच्ची सुंदरता इसी बात में होती है कि दूसरों की देखभाल और मदद के लिए किस प्रकार खर्च किया जाए।जितना ही आप दूसरों के लिए प्रेम का बिखराव करेंगे उतना ही अधिक आपका जीवन सुंदर होता जाएगा। जीवन एक पेड़ की तरह है जो प्रकृति के तत्वों पर पक्षियों और राहगीरों का सामना करता है और जो इंसान अकेला रह गया उसके जीवन का महत्व खत्म हो जाता है। वही जो दूसरों की मदद करने के लिए अपना जीवन बलिदान कर देता है। वही सच्चा इंसान है पता नहीं लोगों के मन से प्यार कैसे खत्म हो जाता है।कैसे लोग जीवन का त्याग करने की सोच लेते हैं? जीवन का कोई मोल नहीं जीवन अमूल्य है.

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बलिया के शहर कोतवाली के महावीर घाट के शुभम रौनियार नगर पालिका में संविदा पर पंप ऑपरेटर की नौकरी करते थे. परिवार में शुभम ही एकमात्र कमाऊ थे, बूढ़े मां बाप के सामने जब नवजान बेटे की अर्थी जाती है, तो उन क्या गुजरती है. शायद ही कोई होगा जो शुभम के माता-पिता के भाव को इस समय समझ सकता है बुढ़ापे में लड़का मां बाप की लाठी होता है और इस प्रकार से जिंदगी से मोह भंग हमारे समाज के लिए ठीक नहीं है नौकरी समाप्त होने के खतरे से शुभम ने अपनी जीवन लीला को खत्म कर लिया।

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शुभम अपने माता-पिता के तीन संतानों में सबसे बड़ा था वह नगर पालिका के नौकरी में छटइया से परेशान था. इस वजह से उसने ऐसा कदम उठाया ,ऐसी घटनाओं से समाज पर भी बुरा असर पड़ता है. शुभम के मौत की वजह 7 महीने नगर पालिका से वेतन ना मिलना बताया जा रहा है. इस घटना के बाद पूरे कस्बे के लोग नगर पालिका के कार्य शैली पर भी सवाल उठा रहे हैं उनका कहना है कि आखिर क्यों संविदा पर काम कर रहे हैं लोगों को बिना किसी सूचना या कारण के बाहर निकाल दिया जाता है और उनका वेतन भी नहीं दिया जाता है।
आखिर क्यों कार्य कर रहे लोगों को उनके भत्ते नहीं दिए जा रहे हैं?